Thursday, July 16, 2015

मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे मोती बैलों के गले में जब घुँगरू, जीवन का राग सुनाते हैं गम कोस दूर हो जाता है, खुशियों के कंवल मुसकाते हैं सुन के रहट की आवाज़े यूँ लगे कही शहनाई बजे आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे जब चलते हैं इस धरती पे हल, ममता अंगडाईयाँ लेती है क्यो ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है इस धरती पे जिस ने जनम लिया, उसने ही पाया प्यार तेरा यहा अपना पराया कोई नही, है सब पे माँ उपकार तेरा ये बाग है गौतम नानक का, खिलते हैं अमन के फूल यहाँ गाँधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ रंग हरा हरीसिंग नलवे से, रंग लाल है लाल बहादूर से रंग बना बसंती भगतसिंग, रंग अमन का वीर जवाहर से...